मेरे लोग ख़ेमा ए सब्र में मेरा शहर गर्द ए मलाल में
अभी कितना वक़्त है ऐ ख़ुदा इन उदासियो के ज़वाल में ?
कभी मौज़ ए ख़्वाब में खो गया कभी थक के रेत पे सो गया
यूँ ही उम्र गुज़ार दी फक़त आरज़ू ए विसाल में,
कहीं गर्दिशों के भँवर में हूँ किसी चाक पर मैं चढ़ा हुआ
कहीं मेरी खाक़ जमी हुई किसी दश्त ए बर्फ़ मिसाल में,
ये हवा ए गम ये फ़ज़ा ए नम मुझे खौफ़ है कि न डाल दे
कोई पर्दा मेरी निगाह पर कोई रख्ना तेरे ज़माल पर..!!