ख़ुद आगही का अजब रोग लग गया है

ख़ुद आगही का अजब रोग लग गया है मुझे
कि अपनी ज़ात पे धोका तेरा हुआ है मुझे,

पुकारती है हवाओं की नग़्मगी तुझको
सुकूत झील का आवाज़ दे रहा है मुझे,

अजीब ज़ौक़ ए मोहब्बत अता किया तूने
वजूद ए संग भी तहज़ीब ए आईना है मुझे,

मैं अपने नाम से ना आश्ना सही लेकिन
तुम्हारे नाम से हर शख़्स जानता है मुझे,

मैं अपने घर के दिए भी भुलाए बैठा हूँ
तेरे ख़याल ने ये हौसला दिया है मुझे,

कहाँ ये फ़ुर्सत ए काविश कि तुझको याद करूँ
शुऊर ए ज़ात का दरपेश मरहला है मुझे,

रईस शेर की दुनिया से क्या ग़रज़ मुझको
किसी की याद ने शाइर बना दिया है मुझे..!!

~रईस वारसी

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