क्या सरोकार अब किसी से मुझे
वास्ता था तो था बस तुझी से मुझे,
बेहिसी का भी अब नहीं एहसास
क्या क्या न हुआ बेरुखी से मुझे,
मौत की आरज़ू भी कर के देखूँ
क्या उम्मीदें है ज़िन्दगी से मुझे ?
फिर किसी पर भी ऐतबार आये
यूँ उतारो न अपने जी से मुझे,
तेरा गम भी न हो तो क्या जीना
कुछ तसल्ली है दर्द ही से मुझे,
कितना पुरकार हो गया हूँ कि था !
वास्ता तो है तेरी सादगी से मुझे,
कर गए मुझको किस क़दर तबाह
मेरे दुश्मन अंदाज़ ए दोस्ती से मुझे..!!