क्या क्या लोग गुज़र जाते हैं रंग बिरंगी कारों में
दिल को थाम के रह जाते हैं दिल वाले बाज़ारों में,
ये बेदर्द ज़माना हम से तेरा दर्द न छीन सका
हम ने दिल की बात कही है तीरों में तलवारों में,
होंटों पर आहें क्यूँ होतीं आँखें निस दिन क्यूँ रोतीं
कोई अगर अपना भी होता ऊँचे ओहदेदारों में,
सद्र ए महफ़िल दाद जिसे दे दाद उसी को मिलती है
हाए कहाँ हम आन फँसे हैं ज़ालिम दुनियादारों में,
रहने को घर भी मिल जाता चाक ए जिगर भी सिल जाता
जालिब तुम भी शेर सुनाते जा के अगर दरबारों में..!!
~हबीब जालिब
























