खुला है झूठ का बाज़ार आओ सच बोलें
न हो बला से ख़रीदार आओ सच बोलें,
सुकूत छाया है इंसानियत की क़द्रों पर
यही है मौक़ा ए इज़हार आओ सच बोलें,
हमें गवाह बनाया है वक़्त ने अपना
ब नाम ए अज़्मत ए किरदार आओ सच बोलें,
सुना है वक़्त का हाकिम बड़ा ही मुंसिफ़ है
पुकार कर सर ए दरबार आओ सच बोलें,
तमाम शहर में क्या एक भी नहीं मंसूर
कहेंगे क्या रसन ओ दार आओ सच बोलें,
बजा कि ख़ू ए वफ़ा एक भी हसीं में नहीं
कहाँ के हम भी वफ़ादार आओ सच बोलें,
जो वस्फ़ हम में नहीं क्यूँ करें किसी में तलाश
अगर ज़मीर है बेदार आओ सच बोलें,
छुपाए से कहीं छुपते हैं दाग़ चेहरे के
नज़र है आइना बरदार आओ सच बोलें,
क़तील जिन पे सदा पत्थरों को प्यार आया
किधर गए वो गुनहगार आओ सच बोलें..!!
~क़तील शिफ़ाई
हाथ आँखों पे रख लेने से ख़तरा नहीं जाता
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