वतन की सर ज़मी से इश्क़ ओ उल्फ़त ही नहीं
खटकती जो रहे दिल में वो हसरत हम भी रखते है,
वतन पर मर मिटने की हिम्मत हम भी रखते है
ये ज़ुर्रत, ये शुज़ाअत, ये बसालत हम भी रखते है,
दुनियाँ को हिला देने के खोखले दावे बाँधने वालो
दुनियाँ को हिला देने की ताक़त बस हम ही रखते है,
बला से हो अगर सारे फ़सादी हिमायती तुम्हारे
ख़ुदा ए हर दो आलम की हिमायत हम भी रखते है,
बहार ए गुलशन अमीद भी सिरात हो जाए
करम की आरज़ू ऐ अब्र ए रहमत हम भी रखते है,
गिला ना मेहरबानी का तो सबसे सुन लिया तुमने
तुम्हारी मेहरबानी की शिकायत हम भी रखते है,
भलाई ये कि आज़ादी से उल्फ़त तुम भी रखते है
बुराई ये कि आज़ादी से उल्फ़त हम भी रखते है..!!