ख़त में उभर रही है तस्वीर धीरे धीरे
गुम होती जा रही है तहरीर धीरे धीरे,
एहसास तुझ को होगा ज़िंदाँ का रफ़्ता रफ़्ता
तुझ पर खुलेगी तेरी ज़ंजीर धीरे धीरे,
मुझ से ही काम मेरे टलते चले गए हैं
होती चली गई है ताख़ीर धीरे धीरे,
तक़दीर रंग अपना दिखला रही है पल पल
बे रंग हो चली है तदबीर धीरे धीरे,
आँखों में एक आँसू भी अब नहीं बचा है
हम ने लुटा दी सारी जागीर धीरे धीरे,
देखा है जब से उस को लगता है जैसे दिल में
पैवस्त हो रहा है एक तीर धीरे धीरे,
आसाँ नहीं था ग़म को लफ़्ज़ों में जज़्ब करना
आई मेरे सुख़न में तासीर धीरे धीरे..!!
~राजेश रेड्डी
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