कम मयस्सर हो जो होती है उसी की क़ीमत
कसरत ए ग़म ने बढ़ाई है ख़ुशी की क़ीमत,
पैरवी ए दिल ए नादाँ का सलीक़ा है जिन्हें
उन से पूछे कोई बे राह रवी की क़ीमत,
तुम ने हँसते मुझे देखा है तुम्हें क्या मालूम
करनी पड़ती है अदा कितनी हँसी की क़ीमत,
एहतिराम अपना ही ख़ुद जिस की निगाहों में न हो
क्या भला उस की निगाहों में किसी की क़ीमत ?
मुझ से धोका तो हुआ दिल को मगर मौज ए सराब
मिल गई मुझ को मेरी तिश्नालबी की क़ीमत,
मेरे सीने में छुपे ज़ख़्म बताएँगे रईस
मैं ने जो की है अदा ज़िंदादिली की क़ीमत..!!
~रईस रामपुरी
अपनी आँखें हैं और तुम्हारे ख़्वाब
➤ आप इन्हें भी पढ़ सकते हैं






























1 thought on “कम मयस्सर हो जो होती है उसी की क़ीमत”