अहल ए उल्फ़त के हवालो पे हँसी आती है…

अहल ए उल्फ़त के हवालो पे हँसी आती है
लैला मज़नू की मिसालो पे हँसी आती है,

जब भी तमसील ए मुहब्बत का ख्याल आता है
मुझको अपने ही ख्यालो पे हँसी आती है,

लोग अपने लिए औरो में वफ़ा ढूँढ़ते है
इन गैरो में वफ़ा ढूँढने वालो पे हँसी आती है,

देखने वालो ! तबस्सुम को करम मत समझो
मासूमियत देख देखने वालो पे हँसी आती है,

चाँदनी रात मुहब्बत में हसीं थी लेकिन
अब तो इन बीमार उजालो पे हँसी आती है..!!

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