कहो तो आज दिल ए बे क़रार कैसे हो ?
शब ए अलम के सताए नज़ार कैसे हो ?
हवस यही है कि पूछे वो आ के हम से कभी
हमारी दीद के उम्मीद वार कैसे हो ?
तड़प रहे हो लहद में कि चैन ओ राहत है ?
कहो तो मुझ से कि अहल ए मज़ार कैसे हो ?
न इस तरह करो पामाल दिल को आशिक़ के
समंद ए नाज़ को रोको सवार कैसे हो ?
हमारी राह न खोटी करो ख़ुदा के लिए
हमें सताओ न सहरा के ख़ार कैसे हो ?
किनारा ख़्वाब को है चश्म ए तर से आशिक़ के
ख़याल ए जल्वा ए दीदार ए यार कैसे हो ?
‘जमीला’ मेरी ज़बाँ से न कुछ निकल जाए
वो मुझ से पूछते हैं बार बार कैसे हो…??
~जमीला ख़ुदा बख़्श