जब भी बैठता हूँ लिखने

जब भी बैठता हूँ लिखने
कुछ लिखा जाता नहीं,

एक उसके सिवा कोई
मौज़ूअ मुझे याद आता नहीं,

बगैर जिसके मुमकिन
ही न था ये मेरा वज़ूद,

बाद उसके क्या होगा
सोच कर जीया जाता नहीं,

माँ की अज़मत लिख सकूँ
वो हुनर मुझे आता नहीं,

उसके ममता का खज़ाना
तो पन्नो में समाता नहीं..!!

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