हवा ए शाम ! ज़रा सा क़याम होगा न ?
चिराग़ ए जाँ को जलाओ, क़लाम होगा न ?
बस एक बात ही पूछी बिछड़ने वाले ने
कभी कही पे मिले तो, सलाम होगा न ?
वहाँ बहशत में ख़ोर ओ कसूर होंगे मगर
क़रार ए जाँ का भी कुछ इंतज़ाम होगा न ?
कभी कभी ही लेकिन पुकारते है तुझे
हमारा चाहने वालो में शुमार नाम होगा न ?
अगर मैं आधा अधूरा ही लौट आऊँ तो
निगाह ए नाज़ ! वही एहतिमाम होगा न ?
बस एक आखिरी बार मुहब्बत से देखना है
बताओ ! तुमसे ये छोटा सा काम होगा न ??