तेरे शहर वाले मेरा मौज़ू ए सुखन जानते है

तू गज़ल ओढ़ के निकले कि धनक ओट छुपे
लोग जिस रूप में देखे तुझे पहचानते है,

यार तो यार है, अग्यार भी अब महफ़िल में
मैं तेरा ज़िक्र न छेडूँ तो बुरा मानते है,

कितने लहजों के गिलाफो में छुपाऊँ तुझको ?
तेरे शहर वाले मेरा मौज़ू ए सुखन जानते है..!!

Leave a Reply

Receive the latest Update in your inbox