हसरत ए दीद ओ वस्ल लिए ख्याल मेरा
तेरे हुस्न ए ख्वाबीदा से जब टकराता है,
ख्वाहिश ए जानाँ से दीवाने की रूह को
पयाम ए इश्क़ ए जावेदाँ मिल ही जाता है,
अक्स ए ख़ुशबू बनकर वो इत्र ओ अम्बर
की तरह दिल ओ दिमाग पे छा जाता है,
लाख कर ले कोशिशे होश में रहने की
पर रूह में समा कर बहका ही जाता है,
क़सूर तो शबाब ए इश्क़ ए जावेदाँ का है
तो इल्ज़ाम फक़त ख्यालात पे क्यों आता है??