हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत…

हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुर्सी के लिए जज़्बात को मत छेड़िए,

हम में कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए,

ग़लतियाँ बाबर की थी, जुम्‍मन का घर फिर क्‍यों जले ?
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए,

हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए,

छेड़िए एक जंग, मिल जुल कर गरीबी के खिलाफ़
साहब ऐसे वक़्त में मजहबी नग़मात को मत छेड़िए..!!

~अदम गोंडवी

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