हमने सुना था फ़रिश्ते जान लेते है
खैर छोड़ो ! अब तो इन्सान लेते है,
इश्क़ ने ऐसी शिनाख्त बख्शी है
अब तो दूर से ही लोग पहचान लेते है,
ग़ुरबत यूँ रक्साँ है हमारी बस्ती में
बेच कर ज़िस्म यहाँ लोग समान लेते है,
दीन तो बड़ी अनमोल चीज है ख़ुदा की
यहाँ लोग अब उसका भी दान लेते है,
इन आँखों ने लाखो में चुना है उसको
यूँ कि लोग रेत से हीरा जैसे छान लेते है,
शहर ए मुनाफ़िक़ से तंग आ गया हूँ मैं
आओ किसी गाँव में कच्चा मकान लेते है,
बख्शीश जब है तेरे इख़्तियार में ख़ुदाया
फ़िर लोग क्यूँ इतने इम्तिहान लेते है ??