हाल ये है कि ख़्वाहिश ए पुर्सिश ए हाल भी नहीं
उस का ख़याल भी नहीं अपना ख़याल भी नहीं,
ऐ शजर ए हयात ए शौक़ ऐसी ख़िज़ाँ रसीदगी
पोशिश ए बर्ग ओ गुल तो क्या जिस्म पे छाल भी नहीं,
मुझ में वो शख़्स हो चुका जिस का कोई हिसाब था
सूद है क्या ज़ियाँ है क्या इस का सवाल भी नहीं,
मस्त हैं अपने हाल में दिल ज़दगान ओ दिलबराँ
सुल्ह ओ सलाम तो कुजा बहस ओ जिदाल भी नहीं,
तू मेरा हौसला तो देख दाद तो दे कि अब मुझे
शौक़ ए कमाल भी नहीं ख़ौफ़ ए ज़वाल भी नहीं,
ख़ेमागाह ए निगाह को लूट लिया गया है क्या
आज उफ़ुक़ के दोष पर गर्द की शाल भी नहीं,
उफ़ ये फ़ज़ा ए एहतियात ता कहीं उड़ न जाएँ हम
बाद ए जुनूब भी नहीं बाद ए शिमाल भी नहीं,
वजह ए म’आश ए बे दिलाँ यास है अब मगर कहाँ
उस के वरूद का गुमाँ फ़र्ज़ ए मुहाल भी नहीं,
ग़ारत ए रोज़ ओ-शब तो देख वक़्त का ये ग़ज़ब तो देख
कल तो निढाल भी था मैं आज निढाल भी नहीं,
मेरे ज़मान ओ ज़ात का है ये मुआमला कि अब
सुब्ह ए फ़िराक़ भी नहीं शाम ए विसाल भी नहीं,
पहले हमारे ज़ेहन में हुस्न की एक मिसाल थी
अब तो हमारे ज़ेहन में कोई मिसाल भी नहीं,
मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं..!!
~जौन एलिया
 




 
                                     
                                     
                                     
                                     
                                     
                                     
                                     
                                    












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