ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं…

ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं
लोग अब ज़िंदगी के मुजरिम हैं,

और कोई गुनाह याद नहीं
सज्दा ए बेख़ुदी के मुजरिम हैं,

इस्तिग़ासा है राह ओ मंज़िल का
राहज़न रहबरी के मुजरिम हैं,

मयकदे में ये शोर कैसा है
बादाकश बंदगी के मुजरिम हैं,

दुश्मनी आप की इनायत है
हम फ़क़त दोस्ती के मुजरिम हैं,

हम फ़क़ीरों की सूरतों पे न जा
ख़िदमत ए आदमी के मुजरिम हैं,

कुछ ग़ज़ालान ए आगही ‘साग़र’
नग़्मा ओ शायरी के मुजरिम हैं..!!

~साग़र सिद्दीक़ी

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