फिर हरीफ़ ए बहार हो बैठे
जाने किस किस को आज रो बैठे,
थी मगर इतनी राएगाँ भी न थी
आज कुछ ज़िंदगी से खो बैठे,
तेरे दर तक पहुँच के लौट आए
इश्क़ की आबरू डुबो बैठे,
सारी दुनिया से दूर हो जाए
जो ज़रा तेरे पास हो बैठे,
न गई तेरी बेरुख़ी न गई
हम तिरी आरज़ू भी खो बैठे,
फ़ैज़ होता रहे जो होना है
शेर लिखते रहा करो बैठे..!!
~फ़ैज़ अहमद फ़ैज़