फ़लक पे चाँद के हाले भी सोग करते हैं
जो तू नहीं तो उजाले भी सोग करते हैं,
तुम्हारे हाथ की चूड़ी भी बैन करती है
हमारे होंट के ताले भी सोग करते हैं,
नगर नगर में वो बिखरे हैं ज़ुल्म के मंज़र
हमारी रूह के छाले भी सोग करते हैं,
उसे कहो कि सितम में वो कुछ कमी कर दे
कि ज़ुल्म तोड़ने वाले भी सोग करते हैं,
तुम अपने दुख पे अकेले नहीं हो अफ़्सुर्दा
तुम्हारे चाहने वाले भी सोग करते हैं..!!
~वसी शाह