एक वा’दा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं
वर्ना इन तारों भरी रातों में क्या होता नहीं,
जी में आता है उलट दें उन के चेहरे से नक़ाब
हौसला करते हैं लेकिन हौसला होता नहीं,
शम्अ जिस की आबरू पर जान दे दे झूम कर
वो पतंगा जल तो जाता है फ़ना होता नहीं,
अब तो मुद्दत से रह ओ रस्म ए नज़ारा बंद है
अब तो उन का तूर पर भी सामना होता नहीं,
हर शनावर को नहीं मिलता तलातुम से ख़िराज
हर सफ़ीने का मुहाफ़िज़ नाख़ुदा होता नहीं,
हर भिखारी पा नहीं सकता मक़ाम ए ख़्वाजगी
हर कस ओ ना कस को तेरा ग़म अता होता नहीं,
हाए ये बेगानगी अपनी नहीं मुझ को ख़बर
हाए ये आलम कि तू दिल से जुदा होता नहीं,
बारहा देखा है ‘साग़र’ रहगुज़ार इश्क़ में
कारवाँ के साथ अक्सर रहनुमा होता नहीं..!!
~साग़र सिद्दीक़ी