दुनियाँ में शातिर नहीं अब शरीफ़ लटकते है
अब सच्चो की बात छोड़ो वो तो सर पटकते है,
पहले मरते थे लोग और भटकती थी रूहें यारो
पर अब तो मरती है रूहें और लोग भटकते है,
नहीं है किसी को गँवारा किसी का आगे बढ़ना
हमेशा अपने ही बन के रोड़ा राहो में अटकते है,
देख कर आती है हमें घिन मक्कार अफसरानो से
जो पाते है हज़ारों लाखो मगर रिश्वत भी झटकते है,
अब बदल गया है यहाँ इंसान कुछ इस तरह से
कि दिल में आए हुए नेक ख्यालात भी खटकते है..!!