दुनियाँ के लोग खुशियाँ मनाने में रह गए
हम बदनसीब अश्क बहाने में रह गए,
कुछ जाँ निसार ऐसे भी गुज़रे है दहर में
मिट कर भी जिनके नाम ज़माने में रह गए,
मिस्मार हो गया था मेरा घर फ़साद में
ता उम्र हम अपना घर ही बनाने में रह गए,
आँसू छलक पड़े तो ख़बर सबको हो गई
हम अपने दिल का दाग़ छुपाने में रह गए,
ख़ुद सर बुलन्द हो न सके उम्र भर कभी
अपने हरीफ़ को जो सिर्फ झुकाने में रह गए,
सीखा नहीं ज़माने से छोटा सा एक सबक़
ता उम्र हम दूसरों को ही सिखाने में रह गए,
अपने हुनर से और तो ज़रदार बन गए
हम लोग खोटे सिक्के फ़कत चलाने में रह गए,
इन्सान भी जलाये गए लकड़ियों के साथ
हम है कि बस अपनी जान बचाने में रह गए..!!