दो जवां दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं

दो जवां दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं
कौन याद करता है हिचकियाँ समझती हैं,

तुम तो खुद ही कातिल हो तुम ये बात क्या जानो
क्यूँ हुआ मैं दीवाना ? बेड़ियाँ समझती हैं,

यूँ तो सैर ए गुलशन को कितने लोग आते हैं
फूल कौन तोड़ेगा ? डालियाँ समझती हैं,

मौसम ए बहारां में तुम जो दूर होते हो
दिल पे क्या गुजरती हैं सिसकियाँ समझती हैं,

बाम से उतरती है जब हसीन दोशीज़ा
जिस्म की नज़ाकत को सीढियाँ समझती हैं,

जिसने कर लिया दिल में पहली बार घर दानिश
उसको मेरी आँखों की पुतलियाँ समझती हैं।..!!

~एहसान दानिश

कोई जो रहता है रहने दो मस्लहत का शिकार

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