दरबार ए वतन में जब एक दिन सब जाने वाले जाएँगे
कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे,कुछ अपनी जज़ा ले जाएँगे,
ऐ ख़ाक नशीनो उठ बैठो वो वक़्त क़रीब आ पहुँचा है
जब तख़्त गिराए जाएँगे जब ताज उछाले जाएँगे,
अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें अब ज़िंदानों की ख़ैर नहीं
जो दरिया झूम के उठे हैं तिनकों से न टाले जाएँगे,
कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे,
ऐ ज़ुल्म के मातो लब खोलो चुप रहने वालो चुप कब तक
कुछ हश्र तो उन से उठेगा कुछ दूर तो नाले जाएँगे..!!
~फैज़ अहमद फैज़