पैगम्बरों की राह पर चल कर न देखना
या फिर चलो तो राह के पत्थर न देखना,
पढ़ते चलो वो इस्म की शहर ए तिलस्म है
गर ख़ैर चाहते हो, पलट कर न देखना,
पहली नज़र ही मे उसे जी भर के देख लो
तहज़ीब ए आशिक़ी है मुकर्रर न देखना,
ये क्या की ख़्वाब देखना सूरज के रात भर
और दिन की रौशनी मे कभी घर न देखना,
जिस वक़्त अपनी फ़तह का परचम करो बुलंद
हारी हुई सिपाह को हँस कर न देखना॥