चराग़ अपनी थकन की कोई सफ़ाई न दे
वो तीरगी है कि अब ख़्वाब तक दिखाई न दे,
मसर्रतों में भी जागे गुनाह का एहसास
मेरे वजूद को इतनी भी पारसाई न दे,
बहुत सताते हैं रिश्ते जो टूट जाते हैं
ख़ुदा किसी को भी तौफ़ीक़ ए आश्नाई न दे,
मैं सारी उम्र अँधेरों में काट सकता हूँ
मेरे दीयो को मगर रौशनी पराई न दे,
अगर यही तेरी दुनिया का हाल है मालिक
तो मेरी क़ैद भली है मुझे रिहाई न दे,
दुआ ये माँगी है सहमे हुए मुअर्रिख़ ने
कि अब क़लम को ख़ुदा सुर्ख़ रौशनाई न दे..!!
~मेराज फ़ैज़ाबादी