उर्दू है मेरा नाम मैं ख़ुसरो की पहेली…
उर्दू है मेरा नाम मैं ख़ुसरो की पहेली मैं मीर की हमराज़ हूँ ग़ालिब की सहेली, दक्कन के
Islamic Poetry
उर्दू है मेरा नाम मैं ख़ुसरो की पहेली मैं मीर की हमराज़ हूँ ग़ालिब की सहेली, दक्कन के
हारे हुए नसीब का मयार देख कर वो चल पड़ा है इश्क़ का अख़बार देख कर, आयेंगी काम
बना के भेजा था उस रब ने अपना तर्जुमान तुम्हे छोड़ के सब कुछ फक़त तुम इन्सान बनो,
एक तो ज़ालिम उसपे क़हर आँखे दिखा रहा है अंज़ाम ए बेहया शायद अब नज़दीक आ रहा है,
अगर चाहते हो तुम सदा मुस्कुराना कभी अपनी माँ का दिल न दुखाना, करो अपनी माँ की
चिड़ियाँ होती है बेटियाँ मगर पंख नहीं होते बेटियों के, मायके भी होते है,ससराल भी होते है मगर
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं सामान सौ बरस के हैं कल की ख़बर नहीं, आ जाएँ
कुछ इस तरह से इबादत खफ़ा हुई हमसे नमाज़ ए इश्क बहुत कम अदा हुई हमसे, गरीब आँखों
कश्ती चला रहा है मगर किस अदा के साथ हम भी न डूब जाएँ कहीं ना ख़ुदा के
किसी से भी नहीं हम सब्र की तलक़ीन लेते है हमें मिलती नहीं जो चीज उसको छीन लेते