बुग्ज़ ए इस्लाम में पड़े पड़े ही
यहाँ कितनो के क़िरदार गिरे है,
सभी मुन्सफ़ गिरे, मनसब गिरे
और ना जाने कितने सालार गिरे है,
सियासत ए दरबाँ के इशारों पर
अदलिया के ऊँचें मीनार गिरे है,
जिन्हें न था वास्ता दैर ओ हरम से
ऐसे भी मज़हब के ठेकेदार गिरे है.!!
फितना ओ ज़ुल्म ए बातिल से अब
कौम ए मुजाहिद नहीं डरने वाले,
हिफ्ज़ ए मरातिब पर है जाँ निसार
मगर हम ईमान नहीं बदलने वाले,
नार ए जहन्नुम में खाक़ हो जाएँगे
ये आज के तवारीख़ बदलने वाले..!!