भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ ?
आजकल दिल्ली में है ज़ेर ए बहस ये मुदद्आ,
मौत ने तो धर दबोचा एक चीते की तरह
ज़िंदगी ने जब छुआ तो फ़ासला रखकर छुआ,
गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही
पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ,
क्या वज़ह है प्यास ज्यादा तेज़ लगती है यहाँ
लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुँआ,
आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को
आप के भी ख़ून का रंग हो गया है साँवला,
इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो
जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुँआ,
दोस्त, अपने मुल्क कि किस्मत पे रंजीदा न हो
उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ,
इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात
अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ..!!
~दुष्यन्त कुमार