बचाओ दामन ए दिल ऐसे हमनशीनों से
मिला के हाथ जो डसते हैं आस्तीनों से,
निगार ए वक़्त को इतना तो पैरहन दे दो
छुपा ले दीदा ए पुरनम को आस्तीनों से,
हमारी फ़िक्र अमानत है सुब्ह ए फ़र्दा की
समाँ है दूर का देखो न ख़ुर्दबीनों से,
अब अपने ज़ख़्म ए जबीं को छुपा भी ले ऐ दिल
टपक रहा है पसीना कई जबीनों से,
तुझे हवा ए मुख़ालिफ़ जगा दिया किस ने ?
बहुत क़रीब था साहिल कई सफ़ीनों से,
न जाने मुजरिम ए ज़ौक़ ए नज़र पे क्या गुज़री
भरी थी राह ए तमाशा तमाशबीनों से,
सुकूत ए वक़्त मुअर्रिख़ है लिख लिया उस ने
जो पत्थरों ने कहा बेख़ता जबीनों से,
शमीम अंजुमन ए अहल ए ज़र में क्या जाएँ
लहू का रंग झलकता है आबगीनों से..!!
~शमीम करहानी
















