ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
वही होता है जो मंज़ूर ए ख़ुदा होता है,
नहीं बचता नहीं बचता नहीं बचता आशिक़
पूछते क्या हो शब ए हिज्र में क्या होता है,
बेअसर नाले नहीं आप का डर है मुझको
अभी कह दीजिए फिर देखिए क्या होता है,
क्यूँ न तश्बीह उसे ज़ुल्फ़ से दें आशिक़ ए ज़ार
वाक़ई तूल ए शब ए हिज्र बला होता है,
यूँ तकब्बुर न करो हम भी हैं बंदे उसके
सज्दे बुत करते हैं हामी जो ख़ुदा होता है,
‘बर्क़’ उफ़्तादा वो हूँ सल्तनत ए आलम में
ताज ए सर इज्ज़ से नक़्श ए कफ़ ए पा होता है..!!
~मिर्ज़ा रज़ा बर्क़