ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तेरे नाम पे रोना आया ?
यूँ तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया,
कभी तक़दीर का मातम कभी दुनिया का गिला
मंज़िल ए इश्क़ में हर गाम पे रोना आया,
मुझ पे ही ख़त्म हुआ सिलसिला ए नौहागरी
इस क़दर गर्दिश ए अय्याम पे रोना आया,
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का शकील
मुझ को अपने दिल ए नाकाम पे रोना आया..!!
~शकील बदायूनी