अब तेरी ज़रूरत भी बहुत कम है मेरी जाँ
अब शौक़ का कुछ और ही आलम है मेरी जाँ,
अब तज़्किरा ए ख़ंदा ए गुल बार है जी पर
जाँ वक़्फ़ ए ग़म ए गिर्या ए शबनम है मेरी जाँ,
रुख़ पर तेरे बिखरी हुई ये ज़ुल्फ़ ए सियह ताब
तस्वीर ए परेशानी ए आलम है मेरी जाँ,
ये क्या कि तुझे भी है ज़माने से शिकायत
ये क्या कि तेरी आँख भी पुरनम है मेरी जाँ,
हम सादादिलों पर ये शब ए ग़म का तसल्लुत
मायूस न हो और कोई दम है मेरी जाँ,
ये तेरी तवज्जोह का है एजाज़ कि मुझ से
हर शख़्स तेरे शहर का बरहम है मेरी जाँ,
ऐ नुज़हत ए महताब तेरा ग़म है मेरी ज़ीस्त
ऐ नाज़िश ए ख़ुर्शीद तेरा ग़म है मेरी जाँ..!!
~हबीब जालिब
दिल ए पुर शौक़ को पहलू में दबाए रखा
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