अब इस मकाँ में नया कोई दर नहीं करना
ये काम सहल बहुत है मगर नहीं करना,
ज़रा ही देर में क्या जाने क्या हो रात का रंग
सो अब क़याम सर ए रहगुज़र नहीं करना,
बयाँ तो कर दूँ हक़ीक़त उस एक रात की सब
प शर्त ये है किसी को ख़बर नहीं करना,
रफ़ूगरी को ये मौसम है साज़गार बहुत
हमें जुनूँ को अभी जामा दर नहीं करना,
ख़बर है गर्म किसी क़ाफ़िले के लुटने की
ये वाक़िआ है तो सैर ओ सफ़र नहीं करना..!!
~अहमद महफूज़