आये जो वो तो दिल के सब अरमान मचल गए
बुझते हुए चिराग़ ए वफ़ा फिर से जल गए,
मिलते तो सबसे आ के है एक हम ही को मगर
मिलती नहीं ख़बर वो कब आ कर निकल गए,
पैमां ओ अहद क्या हुए, सोचूँ कभी कभी
क्यूँ कुर्बतों के होते वो इतने बदल गए,
वीरान थी ज़िन्दगी मेरी एक दीद के बगैर
अब ऐसी ज़िन्दगी से वो कैसे बहल गए,
वारफ्तगी शौक का आलम न पूछिए
हम लोग इंतज़ार के साँचे में ढल गए,
है इश्तियाक़ ए दिल को ख़लिश जानने का अब
क्यूँ कर वो अपनी बातों से पहलू बदल गए..!!