आँखों से दूर सुब्ह के तारे चले गए

आँखों से दूर सुब्ह के तारे चले गए
नींद आ गई तो ग़म के नज़ारे चले गए,

दिल था किसी की याद में मसरूफ़ और हम
शीशे में ज़िंदगी को उतारे चले गए,

अल्लाह रे बेख़ुदी कि हम उन के ही रू ब रू
बेइख़्तियार उन्ही को पुकारे चले गए,

मुश्किल था कुछ तो ऐश की बाज़ी का जीतना
कुछ जीतने के ख़ौफ़ से हारे चले गए,

नाकामी ए हयात का करते भी क्या गिला
दो दिन गुज़ारने थे गुज़ारे चले गए,

तर्ग़ीब ए तर्क ए शौक़ के पर्दे में ग़मगुसार
हर नक़्श ए आरज़ू को उभारे चले गए,

पहुँचाई किस ने दावत ए मय अहल ए ज़ोहद को
शायद तेरी नज़र के इशारे चले गए,

वो दिल हरीफ़ ए जल्वा ए फ़िरदौस बन गया
जिस दिल में तेरे ग़म के शरारे चले गए,

उन के बग़ैर ज़ीस्त ब हर हाल ज़ीस्त थी
जैसी गुज़ारनी थी गुज़ारे चले गए,

जल्वे कहाँ जो ज़ौक़ ए तमाशा नहीं शकील
नज़रें चली गईं तो नज़ारे चले गए..!!

~शकील बदायूनी

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