आँखों का था क़ुसूर न दिल का क़ुसूर था…

आँखों का था क़ुसूर न दिल का क़ुसूर था
आया जो मेरे सामने मेरा ग़ुरूर था,

वो थे न मुझसे दूर न मैं उनसे दूर था
आता न था नज़र को नज़र का क़ुसूर था,

कोई तो दर्दमंदे दिल ए नासुबूर था
माना कि तुम न थे, कोई तुमसा ज़रूर था,

लगते ही ठेस टूट गया साज़ ए आरज़ू
मिलते ही आँख शीशा ए दिल चूर चूर था,

ऐसा कहाँ बहार में रंगीनियों का जोश
शामिल किसी का ख़ून ए तमन्ना ज़रूर था,

साक़ी की चश्म ए मस्त का क्या कीजिए बयान
इतना सुरूर था कि मुझे भी सुरूर था,

जिस दिल को तुमने लुत्फ़ से अपना बना लिया
उस दिल में एक छुपा हुआ नश्तर ज़रूर था,

देखा था कल जिगर को सर ए राह ए मयकदा
इस दर्ज़ा पी गया था कि नशे में चूर था..!!

Leave a Reply

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: