अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इन्सान के बस का काम नहीं…

अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इन्सान के बस का काम नहीं
फ़ैज़ान ए मोहब्बत आम सही, इर्फ़ान ए मोहब्बत आम नहीं,

ये तूने कहा क्या ऐ नादाँ फ़ैयाज़ी ए क़ुदरत आम नहीं
तू फ़िक्र ओ नज़र तो पैदाकर, क्या चीज़ है जो इनआम नहीं,

या रब ये मुकाम ए इश्क़ है क्या गो दीदा ओ दिल नाकाम नहीं
तस्कीन है और तस्कीन नहीं आराम है और आराम नहीं,

आना है जो बज़्म ए जानाँ में पिन्दार ए ख़ुदी को तोड़ के आ
ऐ होश ओ ख़िरद के दीवाने ये होश ओ ख़िरद का काम नहीं,

इश्क़ और गवारा ख़ुद कर ले बेशर्त शिकस्त ए फ़ाश अपनी
दिल की भी कुछ उनके साज़िश है तन्हा ये नज़र का काम नहीं,

सब जिसको असीरी कहते हैं वो तो है असीरी ही लेकिन
वो कौन सी आज़ादी है जहाँ, जो आप ख़ुद अपना दाम नहीं..!!

~जिगर मुरादाबादी

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