आँधी चली तो नक़्श ए कफ़ ए पा नहीं मिला
दिल जिस से मिल गया वो दोबारा नहीं मिला,
हम अंजुमन में सब की तरफ़ देखते रहे
अपनी तरह से कोई अकेला नहीं मिला,
आवाज़ को तो कौन समझता कि दूर दूर
ख़ामोशियों का दर्द शनासा नहीं मिला,
क़दमों को शौक़ ए आबला पाई तो मिल गया
लेकिन ब-ज़र्फ़ ए वुसअत ए सहरा नहीं मिला,
कनआँ में भी नसीब हुई ख़ुद दरीदगी
चाक ए क़बा को दस्त ए ज़ुलेख़ा नहीं मिला,
मेहर ओ वफ़ा के दश्त नवर्दो जवाब दो
तुम को भी वो ग़ज़ाल मिला या नहीं मिला ?
कच्चे घड़े ने जीत ली नदी चढ़ी हुई
मज़बूत कश्तियों को किनारा नहीं मिला..!!
~मुस्तफ़ा ज़ैदी