आज ज़रा फुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया
बंद गली के आख़िरी घर को आज फिर आबाद किया,
खोल के खिड़की चाँद हँसा फिर चाँद ने दोनों हाथों से
रंग उड़ाए फूल खिलाए चिड़ियों को आज़ाद किया,
बड़े बड़े गम खड़े हुए थे रस्ता रोके राहों में
छोटी छोटी खुशियों से ही हमने दिल को शाद किया,
बात बहुत मामूली सी थी उलझ गई तकरारों में
एक ज़रा सी ज़िद्द ने आख़िर दोनों को बर्बाद किया,
दानाओं की बात न मानी काम आई नादानी ही
सुना हवा को पढ़ा नदी को मौसम को उस्ताद किया…!!
~निदा फ़ाज़ली