आज सीलिंग फैन से लटकी हुई है

आज सीलिंग फैन से लटकी हुई है
ये मुहब्बत किस कदर भटकी हुई है,

गैरो के कंधो पर उठी है माँ की अर्थी
भाइयो में इस क़दर खटकी हुई है,

कौन गलती मान ले झुक जाए पहले
बात तो इस बात पर अटकी हुई है,

लाज़ सिर खोले खड़ी है देहरी पर
आज फिर तौहीन घूँघट की हुई है,

ऐ ख़ुशी तू साथ क्या देगी हमारा
लहर कब कोई किसी तट की हुई है,

जो सदी इंसानियत के नाम पर थी
वो सदी मक्कार लम्पट की हुई है…!!

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