आ जाओ मैं लोरी गा के सुना देता हूँ
चाँद अपना है उसे छत पे बुला लेता हूँ,
तुम भटके हुए मुसाफ़िर हो तो क्या हुआ
बैठो तुम्हे थोड़ा पानी ही पिला देता हूँ,
कुछ ख़ास नहीं मेरे पास जो तुम्हे दे सकूँ
चलो तुम्हे तुम्हारा रास्ता ही बता देता हूँ,
सताता है जब भी ये दर्द ए जानाँ मुझको
थोड़ा सा लिखता हूँ और गुनगुना लेता हूँ,
हर तरफ जल रहे है ये जो चिराग़ नफरतों के
कुछ तुम बुझाओ और कुछ मैं बुझा देता हूँ..!!