इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
इन आँखों से वाबस्ता अफ़्साने हज़ारों हैं,
एक तुम ही नहीं तन्हा उल्फ़त में मेरी रुस्वा
इस शहर में तुम जैसे दीवाने हज़ारों हैं,
एक सिर्फ़ हमीं मय को आँखों से पिलाते हैं
कहने को तो दुनिया में मयख़ाने हज़ारों हैं,
इस शम ए फ़रोज़ाँ को आँधी से डराते हो
इस शम ए फ़रोज़ाँ के परवाने हज़ारों हैं..!!
~शहरयार
























