दिल पर जो ज़ख़्म हैं वो दिखाएँ किसी को क्या

दिल पर जो ज़ख़्म हैं वो दिखाएँ किसी को क्या
अपना शरीक ए दर्द बनाएँ किसी को क्या ?

हर शख़्स अपने अपने ग़मों में है मुब्तला
ज़िंदाँ में अपने साथ रुलाएँ किसी को क्या ?

बिछड़े हुए वो यार वो छोड़े हुए दयार
रह रह के हम को याद जो आएँ किसी को क्या ?

रोने को अपने हाल पे तन्हाई है बहुत
उस अंजुमन में ख़ुद पे हँसाएं किसी को क्या ?

वो बात छेड़ जिस में झलकता हो सब का ग़म
यादें किसी की तुझ को सताएं किसी को क्या ?

सोए हुए हैं लोग तो होंगे सुकून से
हम जागने का रोग लगाएँ किसी को क्या ?

जालिब न आएगा कोई अहवाल पूछने
दें शहर ए बे हिसाँ में सदाएँ किसी को क्या..??

~हबीब जालिब

संबंधित अश'आर | गज़लें

Leave a Reply