दरख्तों से गिरे सूखे हुए पत्ते भी ये इक़रार करते हैं

दरख्तों से गिरे सूखे हुए पत्ते भी ये इक़रार करते हैं
जिन्हें कल तक मुहब्बत थी वो अब इंकार करते हैं,

अज़ब दस्तूर ए दुनियाँ है, यहाँ मंतक निराली है
रसाई जिनकी मुश्किल हो उन्हीं से प्यार करते हैं,

कभी तो ऐ ज़िन्दगी रुक जा कोई है मुन्तज़िर तेरा
तेरी खातिर कज़ा से झगड़ा जो हर बार करते हैं,

यहाँ से जाने वाले चले जाते मगर पीछे जो रहते हैं
उन्ही को याद कर कर के वो दिन शुमार करते हैं,

खिज़ां की रुत में जाते हैं पलट कर फिर नहीं आते
यहाँ परिंदे भी तो फूलों से अज़ब ही प्यार करते हैं,

अगर फिर भी कोई मुसाफ़िर यहाँ लौट आये तो
स्वागत उनके आने का हम ही हर बार करते हैं..!!

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