फ़रेब ए हुस्न तेरा एतिबार कर लेंगे
इसी तरह से ख़िज़ाँ को बहार कर लेंगे,
हमारा साथ अगर दे गई हयात ऐ दोस्त
तो हश्र तक भी तेरा इंतिज़ार कर लेंगे,
हम अजनबी की तरह तेरी बज़्म में बैठें
ये जब्र होगा मगर इख़्तियार कर लेंगे,
करम की भीक न माँगेंगे हम ज़माने से
हयात सर्फ़ ए ग़म ए रोज़गार कर लेंगे,
गुलों से बढ़ के हसीं होंगे राह में काँटे
हमारे पाँव के छाले जो प्यार कर लेंगे,
वो हमसफ़र हैं अगर ये गुमाँ भी हो जाए
रह ए हयात को हम ख़ुशगवार कर लेंगे,
अभी तो अपने ही दामन से शौक़ उलझे हैं
कभी तसव्वुर ए दामान ए यार कर लेंगे..!!
~विशनू कुमार शौक