फ़ना कुछ नहीं है बक़ा कुछ नहीं है

फ़ना कुछ नहीं है बक़ा कुछ नहीं है
फ़क़त वहम है मा सिवा कुछ नहीं है,

मेरा उज़्र इस के सिवा कुछ नहीं है
ख़ताकार हूँ और ख़ता कुछ नहीं है,

न अपने हुए वो तो मेरा मुक़द्दर
ज़माने से मुझ को गिला कुछ नहीं है,

न पूछो मोहब्बत का हासिल न पूछो
पशेमानियों के सिवा कुछ नहीं है,

ख़ुशी भी मुसीबत भी राहत भी ग़म भी
जहान ए मोहब्बत में क्या कुछ नहीं है,

था दुश्वार इज़हार ए दर्द ए मोहब्बत
ये क्या कम है जो कह दिया कुछ नहीं है,

वो सुनते थे अहवाल अंजान बन कर
यही शौक़ कहना पड़ा कुछ नहीं है..!!

~विशनू कुमार शौक

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