अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए
अपनी नज़र में आप को रुस्वा किया न जाए,
हम हैं तेरा ख़याल है तेरा जमाल है
एक पल भी अपने आप को तन्हा किया न जाए,
उठने को उठ तो जाएँ तेरी अंजुमन से हम
पर तेरी अंजुमन को भी सूना किया न जाए,
उनकी रविश जुदा है हमारी रविश जुदा
हमसे तो बात बात पे झगड़ा किया न जाए,
हर चंद एतिबार में धोखे भी हैं मगर
ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए,
लहजा बना के बात करें उन के सामने
हमसे तो इस तरह का तमाशा किया न जाए,
इनआम हो ख़िताब हो वैसे मिले कहाँ
जब तक सिफ़ारिशों को इकट्ठा किया न जाए,
इस वक़्त हम से पूछ न ग़म रोज़गार के
हमसे हर एक घूँट को कड़वा किया न जाए..!!
~जाँ निसार अख़्तर