न तो उस्लूब न अंदाज़ गिराँ गुज़रा है
उस पे मेरा फ़न ए परवाज़ गिराँ गुज़रा है,
ये अलग बात नतीजा जो निकलता लेकिन
इतना मायूसकुन आग़ाज़ गिराँ गुज़रा है,
एक न एक रोज़ तो खुलनी ही थी सच्चाई मगर
फ़ाश अचानक जो हुआ राज़ गिराँ गुज़रा है,
जिन में जुरअत नहीं उड़ने की उन्हीं को मेरा
होना यूँ माइल ए परवाज़ गिराँ गुज़रा है,
आते जाते तेरा पैहम यूँ लगाना चोटें
दिल पे मेरे ऐ दग़ाबाज़ गिराँ गुज़रा है..!!
~शमशाद शाद